Tuesday 3 January 2023

कटनी (मध्य प्रदेश) महिला कुली के हौसले ने लोगों को हैरत में डाला भले ही मेरे सपने टूटे हैं, लेकिन हौसले अभी जिंदा है : संध्या


 कटनी (मध्य प्रदेश) महिला कुली के हौसले ने लोगों को  हैरत में डाला



भले ही मेरे सपने टूटे हैं, लेकिन हौसले अभी जिंदा है : संध्या


कटनी (मध्य प्रदेश) "भले ही मेरे सपने टूटे हैं, लेकिन हौसले अभी जिंदा है। जिंदगी ने मुझसे मेरा हमसफर छीन लिया, लेकिन अब बच्चों को पढ़ा लिखाकर फौज में अफसर बनाना मेरा सपना है। इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी। कुली नंबर 36 हूं और इज्जत का खाती हूं।" यह कहना है 31 वर्षीय महिला कुली संध्या का।


मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली संध्या प्रतिदिन बूढ़ी सास और तीन बच्चों की अच्छी परवरिश का जिम्मा अपने कंधो पर लिए, यात्रियों का बोझ ढो रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रेलवे कुली का लाइसेंस अपने नाम बनवाने के बाद बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए साहस और मेहनत के साथ जब वह वजन लेकर प्लेटफॉर्म पर चलती है तो लोग हैरत में पड़ जाते हैं और साथ ही उसके जज्बे को सलाम करने को मजबूर भी।

30 साल की उम्र में वह बच्चों की देखभाल के साथ चूल्हा-चक्की का काम संभाल रही थी, इसी बीच नियति ने धोखा दे दिया। हंसी-खुशी कट रही जिंदगी ने एकदम से करवट बदला और पति भोलाराम को बीमारी ने अपनी आगोश में ले लिया और कुछ दिन बाद पति का देहांत हो गया।


पति की मृत्यु के बाद बच्चों की परवरिश और दो वक्त की रोटी की चिंता संध्या को सताने लगी तो फिर साहस के साथ संध्या ने हिम्मत से काम लिया। बच्चों के खातिर उसने खुद को संभाला और निश्चित किया कि चाहे कुछ भी हो बच्चों की बेहतर परिवरिश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

संध्या के तीन बच्चे शाहिल उम्र 8 वर्ष, हर्षित 6 साल व बेटी पायल 4 साल की है। तीनों बच्चों के भरण-पोषण और बेहतर शिक्षा के लिए वह दुनिया का बोझ ढोकर बच्चों को पढ़ा रही है। संध्या अपने बच्चों को देश की सेवा के लिए फौज में अफसर बनाना चाहती है।


पति भोलाराम की मौत के बाद संध्या जनवरी 2017 से मर्दों की तरह सिर और कांधे पर वजन ढो रही है। संध्या कटनी स्टेशन में 45 कुलियों में अकेली महिला कुली है। वह स्टेशन में पहुंचती है और यात्रियों का सामान उठाने आवाज लगाते हुए साथी कुलियों के साथ सिर पर बोझ ढोकर बच्चों के लिए अपनी जिंदगी गुजार रही है।

असमय सिर से पति का साया उठ जाने से संध्या बस यादों में ही सिसककर रह जाती है। उसके सामने बूढ़ी सास की सेवा और बच्चों की परवरिश सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।


संध्या प्रतिदिन न सिर्फ दुनिया को बोझ ढ़ो रही है बल्कि प्रतिदिनि 270 किलोमीटर का सफर भी तय कर चंद रुपए जुटा रही है। संध्या प्रतिदिन कुंडम से 45 किलोमीटर का सफर तय कर जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुंचती है और फिर इसके बाद कटनी पहुंचती है। वहीं पर काम करने के बाद जबलपुर और फिर घर लौटती है। प्रतिदिन इतनी कठिनाइयों से गुजरकर बच्चों के खातिर काम कर रही है।

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